छत्तीसगढ़ के परम्परागत कृषि उपकरण।cg paramparagat krishi upkaran

भारत गांवों का देश  है ।गांव में रहने वाले हर एक परिवार खेती करता है।वर्तमान में खेती करने के कई आधुनिक यन्त्र आ चुके हैं जिसके मदद से सरल से सरल तरीके से खेती किया जा सकता है।

पर आज भी हमारे गावों में परम्परागत उपकरणों के मदद से खेती किया जाता है। इन उपकरणों से यह फायदा भी है कि पूरे परिवार को रोजगार मिलता है तथा कृषि लागत भी कम आता है।परम्परागत उपकरण के प्रयोग से फसल का उत्पादन अधिक होता है तथा इसका उपयोग आसान होता है।

उदाहरण-थ्रेशर मशीन से कटे धान के तना जिसे गांव में पैरा कहा जाता है ,को जानवर अच्छे से नही खाते हैं।

आइए हम इन उपकरणों और उसके प्रयोग विधि को जानने का प्रयास करेंगे।
 
1. हल
2. कुदाल
3. फावड़ा
4. गैती
5 . हसिया
6. चतवार
7. बेलन
8. कलारी
9. घिढ़ली
10.कुल्हाड़ी
 
1 हल-
 


 हल कृषि का मुख्य परम्परागत उपकरण है ।हल के द्वारा खेत जुताई किया जाता है।इस उपकरण का सरल और सहज होता है।किसान हल के मदद के सामान्य या सघन जुताई कर सकता है।हल के मदद से किसी भी आकर के खेत का जुताई आसानी से किया जा सकता है।


हल लकड़ी को एक निश्चित सेफ में काटकर बनाया जाता है इसके नीचे वाले हिस्से में लोहे का मोटा पट्टी लगा होता है जो मिट्टी को खोदने का कार्य करता है।इसमें एक लंबा डंडी लगा होता है जिसे बैल को बांध दिया जाता है।इस तरह खेत की जुताई की जाती है।


2 कुदाल-







कुदाल एक परम्परागत उपकरण है ।कुदाल से कृषि सम्बन्धी विभिन्न कार्य किये जाते हैं जैसे मिट्टी की खुदाई, खरपतवार को साफ करने,नाली बनाने में आदि ।कुदाल दो प्रकार के होते है है पहला जिसका खुदाई करने वाला सिरा चौड़ा होता है।और दूसरा जिसका खुदाई करने वाला सिरा पतला होता है।

 
3.फावड़ा- 
 

 

 फावड़ा भी परम्परागत खेती में उपयोग होने वाले परम्परागत उपकरण है फावड़ा के मदद से कचड़ा साफ करना ,समतलीकरण आदि किया जाता है । फावड़े के मदद से किसि बारिख समान को भी उठाया जा सकता है।

 
4.गैती-
 




गैती का उपयोग खुदाई करने के लिए किया जाता है। खेत को समतल करने ,मेढ़ बांधने  के लिए गैती का उपयोग किया जाता है।गैती लोहे का बना होता है और लकड़ी का डंडी लगा होता है। लोहे का आकृति बैल के सींघ जैसे दोनो ओर लम्बा सीरा निकला होता है ताकि मिट्टी में आसानी से गड़ सके।
 
5.हसिया-
 

 
हसिया एक बहु उपयोगी उपकरण है ।हसिया अर्ध चन्द्रकार आकृति में बना होता है इसमें लकड़ी का छोटा डंडी लगा होता है।हरिया का उपयोग सब्जी काटने,फसल काटने ,घास काटने,खरपतवार साफ करने ,आदि कार्यो में किया जाता है।हसिया एक परम्परागत उपकरण है।गॉव में हर एक घर मे हसिया अवश्य उपलब्ध होता होता है।
 
6.चतवार-

चतवार कृषि सम्बन्धी एक परम्परागत उपकरण है ।चतवार लकड़ी बनाया हुआ एक मोटा डंडा है जिसके ऊपर वाले हिस्से पतला और नीचे का हिस्सा चौड़ा होता है जिसके मदद से नम मिट्टी को काटा जाता है।इसका उपयोग बरसात के दिनों में मेढ़ के मुहाने को मिट्टी से बांधने में किया जाता है।

 
7.बेलन-

बेलन का उपयोग विभिन्न  फसलो के मिसाई करने मे किया  जाता है।बेलन लकड़ी से बनाया जाता है जिसमे एक मोटा बेलना लगा होता है बैल के मदद से जब बेलन को खिंचा जाता है तब बेलन में दबने के कारण बीज तने से अलग हो जाता है।फसलों के मिसाई के लिए तो वैसे दो तरीके से किया जाता है। 


A .दौरी (बहुत सारे बैलो को एक साथ बांध कर गोल गोल घुमाया जाता जिससे बैलों के खुर से बीज तने से अलग हो जाते हैं)

B.बेलन
 
8.कलारी-
 

 
कलारी लोहे से बनाया जाता है जो अर्ध चंद्राकार आकृति में होता है इसमें बांस का लंबा डंडी लगा होता है।कलारी से फसल मिसाई करते समय उलटने पलटने का काम किया जाता है ताकि सभी बीज तने से अलग होकर झड़ सके।
 
9.घिढ़ली-
घिढ़ली का उपयोग खेत मे रोपा लगाने से पहले मिट्टी को बराबर करने के लिए किया जाता है।
 
10.कुल्हाड़ी-
 

 
यह एक धारदार हथियार है जो कांटा साफ करने पेड़ों की छटाई करने आदि में काम आता है। इसके अतिरिक्त सब्बल,बैल गाड़ी आदि भी परम्परागत कृषि उपकरण है।
 
छत्तीसगढ़ के परम्परागत उपकरण आपको कैसा लगा ये कमेंट के माध्यम से हमे जरूर बताएं। अगर आप भी इसके आलावा और खेती किसानी उपकरण के बारे में जानते है तो उसका नाम कमेंट बॉक्स में शेयर कर सकते है। धन्यवाद !

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