छत्तीसगढ़ी कहानी-बोकरी अउ बाघिन। chhattisgarhi kahani.

छत्तीसगढ़ में कहानी, परम्परा में शामिल हैं।शाम होते ही दादा जी अपने पोते-पोतियों को कहानी सुनाते है,जिससे बच्चों का मनोरंजन होने के साथ-साथ उन्हें सिख भी मिलती है। कहानी सुनना सबको अच्छा लगता है।कहानी के इसी महत्व को ध्यान में रखकर सिंहनी और बकरी की कहानी छत्तीसगढ़ी मे प्रस्तुत है।



                       
                             बाघिन अउ बोकरी

 एक बार के बात ए।एक बोकरी ह अपन चार ठन पिलवा के संग म जंगल ले चारा चर के  लहुटत रहिथे ।उहि रस्ता म बाघिन हर अपन चार ठन पिलवा ल धर के शिकार करे बर जावत रहीथे ।बाघिन अउ बोकरी एक दूसर ल देख डरथें ।

बोकरी सोचथे अब तो मोर अउ मोर लईका मन के जीव नई बाचय।बोकरी ल एक उपाय सुझथे अपन लईका मन ल कहिथे जइसने बाघिन ह तुंहर तीर म आहि, पाँय लागी मोसी कहि देहु ।

बाघिन जइसने खाय बर बोकरी अउ ओखर पिलवा मन कोती लपसथे बोकरी ह पाँय लागव दीदी कहि देथे।बाघिन बोकरी के ‘दीदी’ भाखा ल सुनथे त रुक जथे। एतका म बोकरी के पिलवा मन पाँय लागिन मोसी कहि देथे ।बाघिन ह दीदी अउ मोसी के रिश्ता ल सुन के, रिसता बदनाम झन होवय कहिके बोकरी अउ ओखर पिलवा ल नई खाय।


फेर बाघिन ल एक उपाय सुझथे अउ बोकरी ल कहिथे ,सांझ होवइया हे अंधियार म कहाँ जाहु,चलौ मोरे माड़ा म रात रुक जाहु।  । बोकरी ल कुछू समझ म नई आवय अउ मजबूरी म बाघिन के माड़ा म रात रुके बर चल देथे।बोकरी सोंचथे रात कन ल कइसनो करके के काटहूँ फेर होत बिहनिहा अपन पिलवा मन ल धर के भाग जाहूं।

रात कन बाघिन के माड़ा म सोये के बेरा बाघिन ह बोकरी ल कहिथे बहिनी आज तोर एक झन लईका ल मोर तीर म सोवा देते। बोकरी बेचारी नही नई कहि सकय ,अउ अपन एक  लईका ल बाघिन के तीर म सोवा देथे ।बोकरी बाघिन के चलाकी ल समझ गे रथे।


रातकन जइसने बाघिन के नींद पड़थे, बोकरी अपन लईका ल चुप कन उठा के ले जाथे अउ बाघिन के लईका ल ओखर तीर म सोवा देथे ।बाघिन आधा रातकन नींद म उठथे अउ बोकरी के पिलवा के भोरहा म अपने लईका ल ‘खांव ‘ ले करके अपन दांत म धर देथे ,अउ खा देथे।बिहनिहा होथे त देखथे बोकरी के चारो लईका मन सुघर हे जबकि ओखरे एक लईका ह नईहे।

दूसरईया रात के फेर ओइसने कहिथे ,बोकरी तको ओइसने करथे ।अइसने तइसने करके बाघिन ह अपन चारो लईका ल बोकरी के पिलवा के भोरहा म खा जथे।अब का करय?बाघिन बोकरी के चलाकी ल समझ जथे फेर सोचथे,आज तो बोकरी के पिलवा ल खा के रइहीहूँ ।

पंचवईया रात के बाघिन ह बोकरी ल कहिथे अब तो मोर एक्को लईका नई बचिन बहिनी मोर नींद के बीमारी के कारण मोर लईका मन खतम होगें मोला बहुत सुन्ना सुन्ना लगत हे तोर एक लईका ल मोर तीर म सोवा देते।

बोकरी मन म  सोचिस चार दिन ले तो अपन पिलवा मन ल बचाएवँ पर अब तो मोर लईका के जीव नई बाचय ।अब का करौं ?बोकरी हिम्मत नई हारिस अउ रात कन अपन एक लईका ल बाघिन के तीर म सोवा दिस। रात कन जइसने बाघिन के नींद पड़ीस ।अपन लईका ल चुप कन उठाइस अउ पीपर के लकड़ी ल अपन पिलवा कसन ओढ़ा के बाघिन के तीर म सोवा दिस ।

बाघिन आधा रात होइस त सोचिस आज बोकरी के लईका ल कोन बचाहि ।आज तो मन भर खाहूं कहिके खांव ले पिपर के लकड़ी ल चाब दिस। बाघिन के जम्मों दांत झर गे।
एती बोकरी ह रातों रात अपन पिलवा मन ल धर के दूरिहा भाग गे।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि विपत्ति आने पर हमें घबराने के बजाय धैर्यपूर्वक, सूझबूझ के साथ उसका   सामना करना चाहिए।

दोस्तों आप लोगों यह कहानी कैसा लगा कमेंट बॉक्स में लिखकर हमें अवश्य अवगत कराना ।बाघिन और बकरी की कहानी पसन्द आया हो तो शेयर जरूर करना ।धन्यवाद

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