छत्तीसगढ़ी कविता-नानपन के मोर गॉव।cg poem

अपना गॉंव और गांव में बिताए ओ बचपन , सबको याद होता है, उन लम्हों को याद करते ही सभी के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान उभर आती है।गॉंव की हर एक चीज जिनसे हमारी यादें जुड़ी होती है गॉंव के बारे में सोचते ही एक एक कर आंखों के सामने उभर आती है। 

बचपन में लकड़ी का झूला झूलते थे ,जिसे रेंहचुल कहते थे ।बड़ा मजा आता था।मुझे एक घटना बहुत ही अच्छे से याद है ,जब हम दोस्तों के साथ बैल को चारा चराने ले जाते थे तो एक  दोस्त के पास भैंस थी, जिसके थन से हम लोग उसके बच्चे जैसे मुह लगा कर दूध पीते थे और भैंस सीधी खड़ी रहती थी।


 


 
नानपन के मोर गॉव
 
ददा के मया दुलार,मोर दाई के अचरा के छांव।
याद आथे संगी मोला ,नानपन के मोर गॉव।।
 
पेंड़ तरी खेलन भटकउला।
गउ दइहान के गिल्ली अउ डंडा।।
आषाढ़ के पानी , अउ कागज के मोर नांव……
 
याद आथे संगी मोला…………………………….।
 
लकड़ी के बने, रेंहचुल ढेलउवा।
बइला चरई अउ ,डंडा कोलउवा।।

होत बिहनिहा कुकरा बासय, अउ कउंआ करै कांव कांव………..
 
 याद आथे संगी  मोला……………………………..।
 

 
 
 स्कूल ले आके, तरिया तउड़ई।
कागज के बने, पतंग उड़ई।।

ओ टेड़गा रुख, अउ मोर छोटे-छोटे पांव……………
 
याद आथे संगी मोला……………………………..।
 
ददा के मया दुलार,मोर दाई के अचरा के छांव।
याद आथे संगी मोला नानपन के मोर गांव।।

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यह कविता मेरे और मेरे गॉंव से जुड़ी यादों की कृति है ।मेरी यह कविता आप सबको कैसी लगी कमेंट बॉक्स में लिख कर जरूर बताना दोस्तों ।

 

6 thoughts on “छत्तीसगढ़ी कविता-नानपन के मोर गॉव।cg poem”

  1. जय जोहार संगी हो मोर नाव राजेश यादव आये मैं रइपुर रहवइय्या आव
    आप के कविता अउ जानकारी बड़ निक हे में ये पूछना चाहथव
    आप मन के द्वार बनाये गे ये ब्लॉग के रेस्पॉन्स कइसनाहा मिलथे

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