बाल कविता-हाथी दादा ।baal kavita-hathi dada.

कक्षा में ज्यादातर पढ़ने के विकास करने का एक मात्र सहारा पाठ्य पुस्तक को ही मान लिया जाता है,यदि आप बच्चों को पढ़ना सिखाना चाहते हैं तो यह जानना जरूरी हो जाता है कि आप बच्चों को किस तरह का सामग्री पढ़ने को दे रहे हैं।

बच्चा जब हमारे पास कक्षा -1 में आता है उस समय उसके अंदर एक अजीब सी घबराहट और संकोच स्पष्ट नजर आता है।बच्चों के घबराहट और संकोच को दूर करने के लिए और उससे जुड़ने के आवश्यक हो जाता है कि उन्हें उनके स्तर के अनुरूप प्रयाप्त पाठ्य सामग्री उपलब्ध कराया जाय। उन्हें कुछ ऐसी कविता या कहानी सुनाया जाय जिससे बच्चे को शाला अपने घर जैसा लगने लगे।

 

वर्तमान में शिक्षण के तरीकों में अभूत पूर्व बदलाव आया है।शिक्षक, बच्चे तथा पढ़ाने के तरीके सभी स्मार्ट हो गये हैं।बच्चे बड़े सभी जो भी पढ़ना या जानकारी प्राप्त करना हो मोबाइल उठाकर सीधे नेट में सर्च करते हैं । प्रस्तुत है बाल कविता-

 

 

                           हाथी दादा

हाथी दादा पास बुला लो,पीठ पर तुम हमें बिठा लो।
उत्तर- दक्षिण,पूरब-पश्चिम,चारो दिशाओं में हमें घूमा दो।।

हाथी दादा,हाथी दादा…………………………..घूमा दो।


उत्तर में हिमालय देखो,दक्षिण में कन्याकुमारी।
पुरब में सुंदरवन देखो,पश्चिम में खम्भात की खाड़ी।।
पूरा भारत घूम के आओ,  हर गम तुम भुला लो..


हाथी दादा,हाथी दादा…………………………..घूमा दो।




हिन्दू देखो,मुस्लिम देखो,देखो सिख,ईसाई।
आपस मे सब मिलकर रहते,जैसे हों भाई-भाई।।
दुख-सुख के ये सब साथी, आ के गले लगा लो….


हाथी दादा, हाथी दादा………………………….घूमा दो।

सेना की पराक्रम देखो,किसानों सा कर्मठ।
आजादी के नारों से,गूंज उठा है रग रग।।
आग लगे जो सीने में, आजादी पे लुटा लो…..


हाथी दादा, हाथी दादा………………………..घूमा दो।।


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यदि आप लोगों को यह बाल कविता  पसन्द आया हो या बच्चों के लिए उपयोगी लगा हो तो कमेंट और शेयर जरूर करें।।

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