छत्तीसगढ़ी कहानी अकबर अउ बीरबल(खीर)।chhattisgarhi kahani-akbar au birbal

अकबर और बीरबल की कहानी हिंदी भाषा में जितना सुनें और सुनाए जाते हैं, छत्तीसगढ़ी में भी अकबर और बीरबल की कहानी उतनी ही प्रसिद्ध है।इस कहानी में बीरबल किस प्रकार अपने चतुराई से एक व्यक्ति के साथ हो रहे अन्याय को रोक लेता है,उस चतुराई वाली घटना को बताया गया है।तो लीजिए प्रस्तुत है छत्तीसगढ़ी में अकबर और बीरबल की कहानी ‘खीर।’

                                           अकबर अउ बीरबल

एक बार के बात ए।राजा अकबर अउ रानी जोधाबाई दुनों झन रात कन अपन महल के छत म घुमत रहिथें।घुमत-घुमत रानी ह राजा ल कहिथे,ठंढा के सीजन चलत हे।अतका ठंढा म कोनों रात कन पानी म नई नहा सकत होहीं।कहूँ ठंढा के ऊपर म कोनों प्रतियोगिता रखतेव त बहुत मजा आतिस।


 


दूसर दिन राजा अकबर ह तैयार हो के दरबार पहुंचथे।बीरन अउ सब मंत्री मन खड़ा होके राजा ल सलाम करथें।राजा अपन सिंहासन म बइठ के कथे।आज हमर राज भर म डंका पिटवा दौ,के जेन आदमी तरिया के पानी म उतर के रात भर बिता देहि ओ ल हम इनाम देबो, फेर कोखरो सहारा नई लेना हे।

राजा के आदेश के तामील होथे।राज भर म ढंकापीटवा दे जाथे।जब परजा मन राजा के रखे प्रतियोगिता के बारे म सुनथें त बहुत झन पहिली ले हार मान जथें।सोचथें रात भर कोन पानी म रहे सकहि अकड़ के मर जही।कुछ झन तइयार होथें,अउ प्रतियोगिता म भाग ले लेथें।


प्रतियोगिता के शुरू होथे राजा के महल के तीर के तरिया म सांझकन तरिया म एक एकझन भाग लेवईया मन ल पानी म टोटा तक डुबो देथें अउ राजा के दुझन सिपाही मन दुरिहा ले पहरा देथें।रातकन एके घण्टा बीते रहिथे तभे सब्बो झन ठंढा के मारे पानी ले बाहर निकल जथें।


फेर एक आदमी ह रात भर पानी ले नई निकलय।बिहनिहा कन बाहर निकलथे।सांझकन इनाम दे के पारी आथे।ओ आदमी ल दरबार म बुलाय जथे।इनाम दे के पहिली राजा ह पूछथे,सब के सब ठंढा के मारे पानी ले निकलगिन हे फेर तैं ह कइसे रातभर रहिगे हस।





 

ओ आदमी ह कथे,राजा साहेब मोला बहुत ठंडा लगत रहिस हे। सब कोती अंधियार रहिस हे।डर तको लगत रहिस हे फेर आपके महल के रोशनी ल देख-देख के रात भर ल पहा डरे हौं।अतका बात राजा सुनके राजा ह कहिथे,तैं ह महल के रोशनी के गरमी म रात भर रहिके प्रतियोगिता के नियम टोरे हस कहिके ओला इनाम नई देवय।ये सब घटना ल बीरन बइठे-बइठे देखत रहिथे।

कुछेक दिन बीते के बाद बीरन ह राजा ल भरे दरबार म निवेदन करथे ,के राजा साहेब आज आपमन बर अउ मंत्रीमन बर मोर घर म खाय के इंतजाम कर हौं।आज मोरे घर म खाना हू।राजा कथे ठीक हे बीरन चल खाना के इंतिजाम करके रखबे,हमन आवत हन।

 
राजा साहेब अउ मंत्रीमन बीरन के घर म पहुँचथें।बीरन सब ल बढ़िहा बइठाथे।
कुछ समय बीते के बाद राजा ह बीरन ल कथे ,बीरन खाना बनगे होही त परोस देरी होवत हे।बीरन कथे राजा साहब खीर पके म थोरकन देरी हे,फेर खाना परोसहुँ।

कुछ देर के बाद म राजा कथे बीरन अब जल्दी खाना परोस दरबार भी जाना हे।बीरन कथे थोरकन अउ राजा साहेब।अइसे-तइसे आधा दिन बीत जथे खीर नई पके रहय।राजा असकटा के बीरन के रंधनी खोली म जाके देखथे।


राजा ह बीरन बर जोर से गुस्सा के कथे, ए का बीरन चूल्हा के ऊपर म पाइप फंसा के बरेंडी म टीन ल रखे हस।अइसे म खीर कइसे बनही?बीरन फेर कथे बनही न राजा साहेब।राजा फेर गुस्सा के कथे, चूल्हा ले टीन अलग रखाय हे आँच तको नई पड़त हे कइसे खीर बनही।


बीरन कथे ,जब पानी म डूबे आदमी ल महल के रोशनी के गरमी मिल सकत हे त ओइसने खीर तको बन सकत हे।

 राजा बीरन के बात ल समझ जथे,अउ ओ आदमी ल बुला के इनाम ल देथे।
ए परकार से बीरन ह अपन चलाकी करके ओ आदमी संग अन्याय होय ले बचा लेथे।



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