छत्तीसगढ़ में हाथी और सियार का कहानी बहुत ही प्रसिद्ध है। गॉवों में जब कहानी का जिक्र होता है तो सबसे पहले सियार और हाथी की कहानी का जिक्र होता है।कहानी के इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए आप सब के लिए हाथी और सियार का कहानी छत्तीसगढ़ी में प्रस्तुत है।
हाथी अउ कोलिहा
एक बार बात ए हाथी अउ कोलिहा मितान बदिन।दुनो संगे संग म रहय।संगे म खाय अउ संगें म घूमयँ ।एक दिन दुनो झन कुसियार काटे ल गिन ।कुसियार काटत काटत कोलिहा ह पियास मरगे।कोलिहा ह हाथी ल कहिथे मितान मोला बहुत जोर के पियास लागत हे ।हाथी ह एती तेती ल देखथे ।कहूँ कुछू नई दिखय।आखिर म हाथी ह कोलिहा ल कथे मितान तै मोर पीठ म बइठ जा अउ देख जेन मेर कोकड़ा फड़फड़ावत होही उहि मेर जा पानी मिलहि।
कोलिहा हाथी के पीठ म चढ़ के देखथे अउ कहिथे मितान बहुत दुरिहा म दिखत हे।हाथी कहिथे जा पानी पी के आबे ।कोलिहा गिस अउ लहुट के आगे। हाथी ल कहिथे मितान ओ मेर कुछू नई ए।हाथी आखिर म थक के कहिथे मितान तै मोर पेट म घुसर जा अउ मन भर पानी पी लेबे फेर ऊपर कोति ल मत देखबे ।
कोलिहा हौ कहिके हाथी के पेट म घुसर गे ।पेट के भीरत म खून ल पीस ।पेट भरिस तेखर बाद सोचिस मितान ह ऊपर ल देखे बर का बर मना करे हे, एक बार तो देखव कहिके ऊपर ल देखथे ।ऊपर म लाल लाल करेजा ल देखथे अउ ललचा के हाथी के करेजा ल खा देथे ।हाथी बेचारा मर जाथे।कोलिहा ह पेटे म फंस जाथे।पेट ले निकलेच नई सकय।
एक दिन भगवान शंकर ह घुमत घुमत जात रहिथे ओला आवत देख के कोलिहा ह कहिथे 'तै बड़े के मैं।शंकर भगवान कहिथे मैं बड़े ।कोलिहा ह कहिथे त ले तो पानी गिरा ।अतका बात ल सुनथे त भगवान ह अपन शक्ति देखाय बर पानी गिरा देथे।हाथी के पेट फूल जाथे अउ कोलिहा ह पेट ले निकल के भाग जाथे ।भगवान ह कोलिहा ल मारे बर खूब दउड़ाथे नई पावय।
भगवान ह सोचथे तरिया तीर पानी पिये ल आहि त पकड़ हूँ कहिके तरिया के पानी म डुब जाथे जब कोलिहा पानी पीये ल आथे त भगवान ह कोलिहा के गोड़ ल पकड़ लेथे।एतका म कोलिहा कहिथे देख तो भगवान ल मोर गोड़ ल धरे ल छोड़ के पीपर के जरी ल धरले हे, एतका बात ल सुन के भगवान ह कोलिहा के गोड़ ल छोड़ के पीपर के जरी ल धर लेथे। कोलिहा जान बचा के भाग जाथे।
भगवान ल बहुत गुस्सा आथे अउ कोलिहा के रसता म मैंद के डोकरी बना के लाडू धरा देथे । कोलिहा ह घुमत घुमत आथे अउ लाडू ल देख के कहिथे डोकरी दाई,डोकरी दाई लाडू दे ।
बार बार कहे के बाद जब डोकरी ह कुछू नई बोलय त कोलिहा ल गुस्सा आजथे अउ मैंद के डोकरी ल मारथे जइसे मारथे ओइसने ओखर हाथ पांव मैंद म चिपक जाथे ।भगवान आथे अउ ओला रस्सी म बांध के ले जाथे अउ सुबह शाम चार -चार कुटेला लगाथे। मार म कोलिहा फूल जाथे ।
एक दिन एक ठन मरहा असन दूसर कोलिहा घुमत घुमत बंधाय कोलिहा के तीर म आथे अउ ओला पूछथे -सगा का खाथच बहुत मोटाय हच एतका बात ल सुन के बंधाय कोलिहा ह कहिथे झन पूछ सगा मैं तो भारी मजा म हौं ।मोर मालिक ह मोला आनीबानी के खवाथे।बिहनिहा चार लाडू अउ चार सोहारी ,सांझ कन चार लाडू चार सोंहारी ।मरहा कोलिहा ह कहिथे कुछ दिन मोला तोर मालिक घर रहिके खान दे सगा।
भगवान शंकर कुटेला ले के आथे अउ मरहा ल चार कुटेला मारथे ।कोलिहा ह सोचथे अभी मारे के बाद खाय ल देहि।फेर साम के चार कुटेला लगाथे ।
मार ल देख के मरहा कोलिहा हाथ जोड़ के कहिथे भगवान मैं ओ नोहव मोला मत मार ।अउ सब बात ल बताथे फेर भगवान वोला छोड़ देथे।
मोर कहानी पुरगे ,दार भात चुरगे।
इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि हमें किसी पर जरूरत से ज्यादा विश्वास नही करना चाहिए,हो सकता है वो हमसे विश्वासघात कर दे। किसी को देख कर उसके सुख सुविधा का अनुमान नही लगाना चाहिए,क्योकि हकीकत इसके ठीक उल्टा हो सकता है।
2 Comments
bahut hi acchi kahani he .. bachpan me suna tha bt pura ni or aaj pura sunne ko mil gya
ReplyDeleteधन्यवाद
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